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समान नागरिक संहिता लागू करना मतलब रूढ़िवादी मानसिकता को समाप्त करना।

समान नागरिक संहिता लागू करना मतलब रूढ़िवादी मानसिकता को समाप्त करना।

एक राष्ट्र, एक निशान और एक विधान ऐसा कौन नहीं चाहता l हर कोई चाहता है कि सबके साथ समानता हो l कुछ रूढ़िवादी मानसिकता के कारण हम लंबे समय से कुप्रथाएं ढो रहे थे l
जिसे बहुत पहले समाप्त किया जाना चाहिए था l परंतु भारत में ऐसा नहीं हुआ l
समान नागरिक संहिता एक सामाजिक मामलों से संबंधित कानून होता है जो सभी पंथ के लोगों के लिये विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत व बच्चा गोद लेने आदि में समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ है। यह किसी भी पंथ जाति के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है।
भारत के संविधान अनुच्छेद 44 मे समान नागरिक संहिता का स्पष्ट उल्लेख है। परंतु धर्म-निरपेक्षता की कट्टरता होने के कारण और राजनीतिक तुष्टीकरण के कारण समान नागरिक संहिता देश में लागू नहीं हो पाई।
देवभूमि उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य बन रहा है जहां समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए विधिवत एक कमेटी का गठन किया गया और जिस कमेटी ने पूरे प्रदेश में 20 महीनो तक 72 से अधिक छोटी बड़ी बैठके कर राय सुमारी की गयी। 43 जन संवाद कार्यक्रम किए गए, सोशल मीडिया का सहारा लेते हुए वेब पोर्टल एसएमएस एवं व्हाट्सएप के माध्यम से ऑनलाइन लोगों के सुझाव मांगे गए और करीब दो लाख 33 हजार लोगों ने अपने सुझाव देकर समान नागरिक संहिता को लागू करने में अपनी सहमति दी है।
समान नागरिक संहिता का जो ड्राफ्ट उत्तराखंड में तैयार हुआ है उसमें सभी के लिए सुख, समृद्धि और समानताएं भरी हुई है l यदि मुस्लिम समाज के अंदर हलाला और इद्दत एवं तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं को समान नागरिक संहिता के कारण उत्तराखंड समाप्त करता हैl तो मुझे लगता है कि मुस्लिम समाज को भी इसका सम्मान करना चाहिए। भारत की आबादी एक अरब 40 करोड़ पार हो चुकी है ऐसे में यदि सभी धर्म के लोगों को समान बच्चे पैदा करने का अधिकार होगा तो देश में बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सकेगा ।
सभी धर्म को बच्चे गोद लेने की आजादी होगी, परंतु खास बात यह है कि जो गोद लेने वाला व्यक्ति हो वह अपने धर्म का बच्चा ही गोद ले सकता है। पिता के संपत्ति में बेटे और बेटियों को समान अधिकार मिलेगा। आदिवासी और जनजातीय को देश की मुख्य धारा से जोड़ते हुए उनके पूजा पद्धति और अधिकारों के प्रति कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।
हिंदू विवाह एक्ट के अनुसार एक व्यक्ति एक ही विवाह कर सकते हैं l जबकि मुसलमानों में एक व्यक्ति कई विवाह कर सकते थेl इसे भी एक व्यक्ति एक विवाह समान नागरिक संहिता का अंग माना गया है l इसमें मुस्लिम समाज की उन महिलाओं को आदर और सम्मान मिलेगा जो कहीं ना कहीं बहु विवाह के कारण हासिये पर चली जाती थी l
एक राष्ट्र, एक निशान और एक विधान वर्तमान समय में देश की जरूरत है। समान नागरिक संहिता न केवल उत्तराखंड में बल्कि देश भर में स्वागत करने के लिए युवा पीढ़ी तैयार है। तभी तो बन पाएगा “एक भारत श्रेष्ठ भारत”
भारत चौहान
Bharat Chauhan

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