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जौनसार बावर में धूमधाम से मनाई जा रही है कौदों की नेठाउण

जौनसार बावर में धूमधाम से मनाई जा रही है कौदों की नेठाउण

जौनसार। सावन और भादो के मध्य की इस संक्रांति को जौनसार बावर में ‘कौदों की नेठाउण, गढ़वाल में घी संग्रांद और कुमाऊं में घी त्योहार कहा जाता है। जौनसार बावर में इस संक्रांति को “कौदों की नेठाउण” इसलिए कहते हैं क्योंकि पूरे सावन के महीने में कोदों (मंडुवे) की गुड़ाई होती थी। उस दौर में संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्रों सहित जौनसार बावर में भी आर्थिकी का मुख्य आधार मंडुवा ही हुआ करता था। मंडुवे की गुड़ाई वर्षा काल में होती है। इस दौरान जमीन में अत्यधिक खरपतवार निकलने के कारण मंडुवे की निरायी गुड़ाई का काम करना बहुत कठिन होता था, विशेष प्रकार के बड़े-बड़े पत्तों से बनी हुई पातोई (बरसाती) के नीचे दिनभर महिला और पुरुष गुड़ाई करते रहते थे।

जब तक सभी के खेतों की गुड़ाई समाप्त नहीं होती थी तब तक गांव के महिला पुरुष सामूहिक रूप से एक परिवार के खेत की गुड़ाई पहले समाप्त करते थे। फिर दूसरे परिवार के साथ निराई गुड़ाई करने जाते थे,जिसे स्थानीय बोली भाषा में “गोढावणो” कहते थे तभी मंडुवे के बड़े-बड़े खेतों की निराई गुड़ाई समाप्त होती थी।

सावन माह में अत्यधिक वर्षा होने के कारण कीचड़ से सने हुए हाथ, दिन भर की मेहनत, पूरा माह बोरियत भरा रहता था। इसलिए इस माह की समाप्ति और अगले माह के आगमन को त्यौहार के रूप में मनाना प्रारंभ किया।
संक्रांति को परिवार, गाँववासी एवं रिश्तेदार सामूहिक रूप से मनाते थे जिसमें हलवा, पुरी के साथ विभिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते थे। सभी लोगों का एक दूसरे के घर आना-जाना होता है। गाँव में खूब मेहमान बाजी होती थी। जौनसार बावर में “कोदो़ की नेठाउण” इस प्रकार से मनाई जाती थी।

बदलते सामाजिक परिवेश के साथ जौनसार बावर ने भी नगदी फसलों की ओर अपना रुख कर लिया। अब ना तो लोग मंडुवा लगा रहे हैं और ना ही उसकी निराई गुड़ाई होती है। त्यौहार को मनाने की पुरानी परम्परा है, तो उसको हर्षोल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है ।
मंडुवे के स्थान पर अब नगदी फसलों ने ले ली है क्योंकि उसमें बहुत अधिक मेहनत नहीं लगती और दाम भी अच्छे मिल जाते हैं। इसलिए जिन खेतों में मंडुवा लगता था उन खेतों में अब अदरक, मिर्ची, फूलगोभी, बंद गोभी, धनिया, अरबी, आलू आदि फसलों को प्रमुखता दी जाती है।

कुमाऊं के कृषक वर्ग की ओर से इस पर्व पर खाद्य पदार्थ-गाबे (अरबी के पत्ते) भुट्टे, दही, घी, मक्खन आदि को सबसे पहले ग्राम देवता को चढ़ाया जाता है, और उसके बाद पण्डित -पुरोहितों को ‘ओलग‘ भेंट करते हैं । आखिर में इन्हें स्वयं उपयोग में लाया जाता
घी संक्रांति भादो ऋतु या मानसून के मौसम का स्वागत करने के लिए मनाई जाती है, जब आसपास का वातावरण बरसाती और गीला होता है। आयुर्वेद के अनुसार, यह वह समय होता है जब पृथ्वी की ‘अग्नि ऊर्जा’ सबसे ऊपर होती है, जबकि मानव की अग्नि या पाचन शक्ति बहुत कम हो जाती है।

भारत चौहान

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