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बच्चों के लिए लिखना बच्चों का खेल नहीं – साहित्यकार श्री हटवाल

बच्चों के लिए लिखना बच्चों का खेल नहीं – साहित्यकार श्री हटवाल

बच्चों के लिए लिखना बच्चों का खेल नहीं – साहित्यकार श्री हटवाल

Prem Pancholi

बच्चो के लिए पुस्तक लिखना कोई मखौल नही है बल्कि सबसे कठीन और आवश्यक कार्य है। यह उद्गार वरिष्ठ साहित्यकार डा० नंदकिशोर हटवाल ने एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड द्वारा ‘हमारी विरासत एवं विभूतियां’ पुस्तकों के विकास में संदर्भदाता/विशेषज्ञ के रूप में योगदान देते हुए कही है। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब कभी भी ये चुनौती आयी वे महसूस करता रहे कि किसी लम्बे, विस्तारित, उलझे, जटिल और बड़े लोगों के लिए माने जाने वाले विषयों को बालरूचि और बालमनोविज्ञान के अनुरूप आकर्षक, रोचक और सरल से सात-आठ सौ शब्दों में बच्चों के लिए एक पठन सामग्री या पाठ के रूप में विकसित करना और ऐसे 20-25 पाठों को तैयार कर एक चित्रों से सुसज्जित, रंगीन और आकर्षक किताब के रूप में बच्चों को परोसना बच्चों का खेल नहीं है।

दरअसल ऐसा साहित्य रचना जिसे बच्चा खुद पढ़े, ऐसी रचना करना जो रचना खुद को बच्चों से पढ़वा ली जाय। ऐसा लिखना जिसे बच्चा शिक्षकों-अभिभावकों या परीक्षा की डर या दबाव से नहीं अपनी रूचि, मन और इच्छा से पढ़े। कुछ ऐसा लिखना जो बच्चों के दिल में उतरे, दिमाग में उतारने के लिए आगे की बड़ी जिंदगी और बहुत कुछ उसके पास रहता है।

श्री हटवल ने कहा कि ऐसी किताब तैयार करना जिसे बच्चा मोबाइल किनारे रख हाथ में उठा ले और पन्ने पलटना शुरू कर दे।

यद्यपि आज के दौर में बाल साहित्य को मोबाइल पर उपलब्ध कराने, ई-बुक या डिजिटल फार्म में उपलब्ध कराने के बारे में भी सोचना चाहिए। ऐसा साहित्य रचना जिसे कि हम बाल साहित्य कह सकें, यह न सिर्फ चुनौती भरा बल्कि एक बड़ी जिम्मेदारी का काम भी है। यह उन्होंने एस.सी.ई.आर.टी. में सेवा के दौरान इस तरह की जिम्मेदारियों और चुनौतियों का समाना किया है।

बहरहाल वर्तमान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में समय के बदलावों को दर्ज करते हुए, वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों को बाल साहित्य में सम्मिलित कर पाना बच्चों का खेल तो नहीं है। लेकिन हम बच्चे हैं भी कहां! बड़े हो गए हैं। इस पर श्री हटवाल ने कहा कि इच्छा शक्ति और संसाधन हों तो हमारे पास प्रतिभाशाली शिक्षकों और विशेषज्ञों की कमी नहीं है।आसानी से इस चुनौती से पार पा सकते हैं।

अतएव बहरहाल इस कसौटी पर खरा उतरने की कोशिश में एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड द्वारा ‘हमारी विरासत एवं विभूतियां’ पुस्तक विकास कार्यशाला लगभग पूरी हुई है।

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