देहरादून। बात उन दिनों की है जब अजय टामटा उत्तराखंड सरकार में सैनिक कल्याण मंत्री थे। 3 मई को रामताल गार्डन चकराता में शहीद केसरी चंद मेले के लिए हमने उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। जब अतिथियों का सम्मान किया जा रहा था तब संचालक महोदय ने कहा है कि मान्य मंत्री को इस मेले की स्मृति को चिरस्थाई बनाई रखने के लिए “डांगरा” अर्थात फरसा भेंट किया जाएगा।
अत्यंत शोर शराबे में मंत्री ने “डांगरे” को घाघरा सुना उन्होंने बगल में बैठे भाजपा के एक वरिष्ठ नेता से चुपके से कहा है कि नहीं – नहीं रहने दीजिए मेरा तो अभी विवाह भी नहीं हुआ घागरे का मै क्या करूंगा?
नेताजी भी समझ नहीं पाए उन्होंने तुरंत समिति के लोगों को बुलाकर कहा कि भाई मंत्री को घाघरा क्यों दे रहे हो? तब समिति के लोगों ने वाक्य को दुरस्त करते हुए कहा कि “घाघरा” नहीं “डांगरा” दिया जा रहा है जो जौनसार बावर संस्कृति में शौर्य का प्रतीक है। कल बहुत दिनों बाद अजय भाई विधानसभा के लॉबी में मिले, पुरानी बातों को ताजा करते हुए उन्होंने यह संस्मरण सुनाया तो हम सब लोग हंसते-हंसते लोटपोट हो गए। अजय हमारे पुराने मित्र है, संघ के अनेक प्रशिक्षणो में हमें साथ रहने का मौका मिला। वास्तव में वह बहुत सरल और सहज है। शून्य से शिखर तक पहुंचाने का हुनर यदि किसी से सीखना है तो हमारे अजय टामटा जी उनके लिए सबसे अच्छा उदाहरण है।