देहरादून। सेंट मैरी स्कूल से बेटे ने पांचवीं की परीक्षा पास की तो मैंने पत्नी से कहा कि एकलव्य आवासीय विद्यालय के प्रवेश परीक्षा के फॉर्म आए हैं उसे भरा देते हैं ताकि बेटे को भी उस विद्यालय में प्रवेश मिल सके, (यह विद्यालय कक्षा 6 से 12वीं तक संचालित होते हैं) श्रीमती ने सख्त लहजे में मना किया और कहा कि मैं एक महाविद्यालय में प्रोफेसर हूं हम प्राइवेट स्कूल में फीस देने के लिए सक्षम है यह विद्यालय उन बच्चों के लिए है जो दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों से पढ़कर के आते हैं जो अभिभावक प्राइवेट स्कूल में अपने के बच्चे पढ़ाने में असमर्थ है उन सभी बच्चों के लिए एकलव्य आवासीय विद्यालय हैं।
2 दिन पहले एकलव्य आवासीय विद्यालय कालसी (जो विशेष कर दूरस्थ क्षेत्र के जनजातीय बच्चों के लिए संचालित किया जाता है) में एक कार्यक्रम के निमित्त मेरा जाना हुआ मुझे ज्ञात हुआ है कि ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालयों से पढ़ने वाले बच्चों के तो यहां बहुत कम एडमिशन हो पाते हैं क्योंकि उनकी पढ़ाई गांव के उस परिवेश में होती है जहां अध्यापक ईद के चांद होते हैं फिर गांव का माहौल भी पढ़ाई वाला नहीं है। उत्तराखंड बोर्ड रामनगर एकलव्य विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की प्रवेश परीक्षा लेते हैं, कॉन्वेंट स्कूल से पांचवी पास करके और ट्यूशन पढ़ कर नौकरीपेशा मां-बाप के बच्चे इस प्रवेश परीक्षा को आसानी से पास कर लेते हैं और फिर बड़े बाप का बेटा सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाकर यहां से 12वीं पास करके आईआईटी, एनआईटी में प्रवेश करते हैं। और गरीब का बेटा प्राथमिक विद्यालय के उस दहलीज को पार कर पाने में असमर्थ होता है। वर्तमान प्रतिस्पद्दा के युग में ग्रामीण परिवेश से आए हुए वह छात्र पिछड़ जाते है। जबकि एकलव्य आवासीय विद्यालयों का उद्देश्य है कि मेधावी छात्र जो आर्थिक रूप से कमजोर हो उन्हें अवसर दिया जाए।
मुझे तब और आश्चर्य हुआ जब पता चला की जनजाति (ST) क्षेत्र के एक विधायक के बच्चें भी यही पढ़ रहे है, जौनसार बावर क्षेत्र के बड़े व्यवसायों के बच्चे भी यही पढ़ रहे हैं बड़े-बड़े अधिकारियों के बच्चे भी इस सरकारी सुविधा का लाभ ले रहे हैं। और वह गांव का गरीब उसका क्या होगा..? साथ में अनुसूचित जाति (SC) के बच्चों का भी इस विद्यालय में प्रवेश नहीं होता, वह भी होना चाहिए था!
मेरा सुझाव है जो बच्चे ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों से पढ़कर आते हैं ST/ SC उन्हें ही एकलव्य आवासीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए पात्र माना जाए वास्तविक रूप से दूरस्थ शिक्षा और जनजातीय सुविधाओं का लाभ उन्हें मिलना चाहिए जो आज भी जनजातीय क्षेत्रों गावों में रह रहे हैं जो लोग सरकार के उच्च पदों पर आसीन है और जनजाति क्षेत्र से बाहर रह रहे हैं, जो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने में समर्थ है वह गांव के अपने भाई के बच्चों के लिए इतना योगदान अवस्य दे ताकि उसके बच्चे भी सरकारी योजनाओं का लाभ लेते हुए एकलव्य जैसे स्कूलो में पढ़ सकें।