नीरज उत्तराखंडी
पुरोला। जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर हिमाचल प्रदेश एवं जनपद टिहरी के कुछ गांवों के पंडित जो जौनसार की संस्कृति से जुड़े हैं। यहां के ब्रह्मवृति करने पंड़ितों का एक ज्योतिष संग्रह हैं। जो “बागोई” तथा “सांचा” नाम से जाना जाता है। बागोई का अर्थ भाग्य वहीं एवं सांचा, सच का अपभ्रंश है। क्षेत्र के बुजुर्गों एवं पंड़ितों ने इस विद्या की उत्पत्ति एवं लिपि के विषय में कोई भी जानकारी लेनी आवश्यक नहीं समझी । यही कारण है कि इस ज्योतिष संग्रह की उत्पत्ति एवं लिपि के विषय में सटीक प्रमाण उपलब्ध नहीं हो पाये। किन्तु कुछ स्थानीय बुजुगों एवं जानकारों का मत है कि यह विद्या पाण्डव काल से चली आ रही हैं जिसका उपयोग पाण्डवों के छोटे भाई सहदेव किया करते थे तथा कुछ लोग ईष्ट देव महासू देवता के आगमन काल से इस विद्या का प्रचलन बताते हैं। इसकी लिपि के सम्बन्ध में कुछ बुजुर्ग इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि इसकी लिपि हिमाचल प्रदेश के चन्दणा एवं ‘खड़काहा के ‘पावचों द्वारा लिखी गई थी, किन्तु जानकार इस लिपि में स्थानीय लिपि से भिन्नता पाई जाती है। यह संग्रह क्षेत्रीय ज्योतिष विद्या का सम्पूर्ण ग्रन्थ है।
क्षेत्र में इस ग्रन्थ को पवित्र एवं पूज्य माना जाता है। इसे पंडित लोग लाल वस्त्र में बांधकर रखते हैं। तथा धूप चढ़ाते हैं। क्षेत्र में इसकी इतनी मान्यता है कि किसी भी विवादास्पद स्थिति में इसकी कसम दी जाती है। लोग इसकी झूठी कसम लेने में डरते है! इस बागोई अथवा सांचा के अंदर चौकोर आकार में लगभग डेढ़ से दो इंच लम्बा ‘पाशा’ रखा होता हैं इसके चारों परतों पर शून्य के रूप में क्रमशः एक से चार तक निशान बने होते है । बताया जा रहा है कि पूर्व में यह पाशा गरूड़ पक्षी की हड्डी से निर्मित करते थे उसे शुद्ध एवं मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित करने के बाद इस ग्रन्थ के अन्दर रखते थे। किन्तु आज तो अब चन्दन की लकड़ी का ‘पाशा’ बना कर इस्तेमाल किया करते हैं।
प्रश्नकर्ता प्रश्न करते समय कुछ चावल एवं दक्षिणा इस ग्रन्थ को चढ़ाते हैं। तब पंडित लोग अपने ईष्टदेव एवं इस विद्या की दुहाई लेकर सम्बन्धित प्रश्न के समाधान की कामना करते हुए उस पाशे को ग्रन्थ के मुख्य पृष्ठ पर डालते हैं। पाशा जिस परत पर रूकता है उस परत के अंक लेकर बागोई अथवा सांचा में उन्ही अंकों की होरी को पढ़ता हैं और क्रमशः यह क्रिया तीन बार दोहराई जाती है, फिर तीनों बार के होरियों की संख्या का योग लेकर उस योगफल की होरी के फलादेश का आंकलन पूर्व के तीनों होरयों के फलादेश से किया जाता है। समानता मिलने पर प्रश्नकर्ता को तदनुसार उसके प्रश्न का उत्तर समाधान हेतु बताया जाता है। कुछ लोग इस विद्या को रहस्यमयी ज्योतिष विद्या रमल से सम्बन्धित बताते हैं क्योंकि एक प्रकार से इसका प्रश्न प्रकरण अंक ज्योतिष पर ही आधारित है। इस ग्रन्थ में प्रश्न प्रकरण की होरियां हैं। प्रश्न प्रकरण के पश्चात ग्रन्थ में अनेक शुभ मुहूतों का भी समावेश है। ब्रह्मपात (पटटचक्र), छिक्का दिशा, शुभ बलाओं – विवाह आदि गृहारम्भ के विषय में भी उल्लेख है तथा भवन निर्माण में (कर्म) – चक्र वस्तुशास्त्र में विस्तारपूर्वक वर्णन दिया गया है। भवन बनाने के लिए भूमि की परीक्षा (जांच) के बारे में लिपि में समाधान दिया गया है। बालक के जन्म लगन एवं राशि का नक्षत्रों द्वारा उसके वर्तमान या भविष्य में शुभ एवं अशुभ योगों के प्रभाव तथा परिहार का विस्तृत वर्ण हैं।
यहीं नहीं नाग, तिला, पीठ पर किनौटी एवं मृगी जैसे असाध्य रोगों का भी उपचार दिया गया बताया गया है। किन्हीं ग्रन्थों में (कागा होरी) कौवे की पहचान भी बागोई में उपलब्ध है। अनेक प्रकार के यन्त्र, तन्त्र, भन्त्र, भूत, प्रेत मसाण मातृका दोष निवारण एवं अशुभ योगों में हुई हानियों से भविष्य में निवारण हेतु तान्त्रिक उपचार असाध्य रोग निवारण, रक्षक कवच आदि समस्त यन्त्रों तन्त्रों द्वारा अनेक विधान दिए गए हैं। इस ग्रन्थ को गागर में सागर वाली कहावत चरितार्थ करती हैं। इस विद्या के उपयोग करने वाले पंडित को यह अति आवश्यक है कि
वो अपने उचित सात्विक खान-पान,आचार विचार नियम संयम एवं परमार्थ की भावना से विद्या के उपयोग के द्वारा उचित लाभ प्राप्त करवा सकते हैं।
बहरहाल इस विद्या का मूल ग्रन्थ असंभव हैं। यदि। कहीं पुराने जीर्णशीर्ण ग्रन्थ हैं भी उसकी पूर्ण जानकारी अब कम ही लोगों को हैं। तथा यदि उन पुराने ग्रन्थों की हस्त लिखित लिपि हैं भी तो जिन-जिन पंड़ितों ने प्रतिलिपियां बनाई हैं। वहां-वहां के पंड़ितों ने स्थानीय भाषा का भी इसमें प्रयोग किया है। जिस कारण इन ग्रन्थों की लिपि में विभिन्नता पाई जाती हैं। दौलत राम पांडे, सूरत राम जोशी, मस्त राम पांडे संतराम जोशी का कहना है कि इस विद्या एवं लिपि को लोप होने से बचाने का प्रयास करें नहीं तो निकट भविष्य में सदैव के लिए इस लिपि का लोप हो जायेगा।