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“सर जौनसारी” स्वर्गीय सरदार सिंह राय थे एक महान शख्सियत

“सर जौनसारी” स्वर्गीय सरदार सिंह राय थे एक महान शख्सियत

फकीरा सिंह चौहान स्नेही की कलम से

देहरादून। जब मैने आशाराम वेदिक इंटर कॉलेज विकास नगर मे एक विद्यार्थी के रूप में पहली बार कदम रखा, तो कॉलेज में ही नही आपितु पूरे शहर मे केवल एक ही नाम गूंज रहा था सर जौनसारी जी का, जो समय अंग्रेजी साहित्य के जाने माने प्रवक्ता थे। उस महान शख्सियत के बारे मे लिखना मेरे लिए सूरज को दीया दिखाने के समान होगा। क्योंकि वह वह मेरे गुरु थे इसलिए मेरे शब्द भी उनके बारे में लिखने के लिए छोटे पड़ जाएंगे वह एक जमाने में किसी परिचय के मोहताज नहीं थे। पूरा जौनसार बावर ही नही अपितु पूरे उतरा खंड के अंदर उनके जैसा कोई चार भाषाओं का प्रखर ज्ञाता, विद्वान साहित्यकार, शायर, वक्ता, उच्च कोटी का शिक्षित शिक्षक तथा नेक दिल व्यक्ति नहीं था। इसीलिए आकाशवाणी नजीबाबाद केंद्र के द्वारा उनको सर जौनसारी की उपाधि दी गई थी। मैं इस बात से भी आपको भली भाँति अवगत करना चहाता हुं कि जौनसारी कोई जाति सूचक शब्द नहीं है, अपितु एक क्षेत्र वाचक शब्द है, जो एक ‍विशेष क्षेत्र से सम्बन्धित है।

सर जौनसारी जी का वास्तविक नाम था सरदार सिंह राय ( एस एस राय साहब) जिनका जन्म जौनसार बावर के उत्पालटा गांव में 02अक्टूबर 1930 को हुआ था। इनके पिता माधो सिंह राय, एक सदर स्याणा थे, जो जौनसार बावर के चार चौंतरु परिवार मे से एक थे। सरदार सिंह राय साहब की प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा एक छोटे से कस्बे कालसी में हुई,जहाँ पर अशोक की शिलालेख विद्यमान है, तथा कालसी एक जमाने मे सिरमौर के राजा की भी राजधानी हुआ करती थी। इसीलिए यह स्थान एक जामाने मे बहुत ही प्रसिद्ध था। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए उनको देहरादून के गढ़वाल विश्वविद्यालय में जाना पड़ा जहाँ से उन्होंने अंग्रेजी में मास्टर डिग्री हासिल करी। हिंदी, फारसी,उर्दू भाषाओं पर भी इनकी अच्छी पकड़ थी। अध्यापन के दौरान वह जौनसार बावर छात्र संघ के प्रथम अध्यक्ष भी रहे, तथा अंग्रेज़ी विषय मे मास्टर डिग्री हासिल करने वाले अपने मुल्क जौनसार बावर के वह प्रथम व्यक्ति थे।

सर जौनसारी के मन में बचपन से ही अपने क्षेत्र की उन्नति, जागृति, तथा उत्थान के प्रति विशेष लगाव था वह संपूर्ण जौनसार बाबर क्षेत्र को शिक्षित संपन्न देखना चाहते थे। इसीलिए सरदार सिंह राय ने अपनी सम्पूर्ण सेवा शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित करी तथा विकास नगर के मशहूर स्कूल आशाराम वेदिक इंटर कॉलेज मे अंग्रेजी के प्रवक्ता तथा प्रधानाचार्य के पद आसिन होकर सन् 1993 मे सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुऐ थे।

अपने जीवनकाल के दौरान समाज के लिए उन्होंने कई महत्वपूर्ण कार्य किये। जैसा कि आपको पहले ही बता चुके हैं कि उनको चार भाषाओं मे शब्दों की बेहतरीन महारत हासिल थी, जिसके बदौलत वह एक उर्दू के अच्छे शायर,कवि तथा हिंदी अंग्रेजी के उत्कृष्ट साहित्यकार, कहानीकार के रूप में विख्यात हुए। सन् 1978 मे वैन गार्ड अंग्रेजी साहित्यिक समाचार पत्र एवं नया जमाना मे उन्होंने एक अनौपचारिक संवाददाता के रूप में कार्य भी किया। उनकी रचनाएं सर जौनसारी के उपनाम से वैन गार्ड साप्ताहिक हिंदी अंग्रेजी अनुभागों में प्रकाशित होती रहती थी। उनके अंग्रेजी में कई पुस्तके एंव लेख भी प्रकाशित हुए थे। आकाशवाणी मे लोक भाषा, शिक्षा संस्कृति एवं वेशभूषा पर इनकी वार्ताओं के प्रसारण तथा समाचार पत्रों में इनके लेख अधिकतर प्रकाशित होते रहते थे ‌। जिसके कारण आकाशवाणी नजीबाबाद से उनको सर जौनसारी की उपाधि से अलंकृत किया गया था । अपने जमाने में वह उर्दू के बहुत ही उत्कृष्ट शायर थे । अपनी इसी लोकप्रियता के कारण देहरादून के हिंदी भवन में एक नागरिक समारोह में उनको उर्दू शायरी के लिए गौरव भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

लोक संस्कृति लोक साहित्य से इनका विशेष प्रेम था क्योंकि बचपन से ही उनको साहित्य के प्रति विशेष रूचि थी। उनके पास शब्दकोष का भंडार था। जौनसार बावर हिमाचल रंवाई, पांचवादूंन तथा देहरादून मे विशेष कर अंग्रेजी और उर्दू साहित्य के लिए इनकी एक अलग से पहचान बनी थी। सर जौनसारी ने राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश करी उन्होंने चकराता विधानसभा से चुनाव भी लड़ा लेकिन राजनीति में उनको खास सफलता हासिल नहीं हुई। अपने गांव के नजदीकी क्षेत्र साहिया मे हाई स्कूल खुलवाने में उनका बहुत ही सराहनीय योगदान रहा तथा बाद वह राजकीय इंटर कॉलेज साहिया के प्रबंधक भी रहे थे। इसके अतिरिक्त साथ मे वे कई यूनिवर्सिटीयों के सदस्य भी रहे। तकरीबन 45 वर्ष पूर्व हिंदी की एक प्रसिद्ध पुस्तिका कादंबरी में उनका एक लेख छपा था एक विद्यार्थी का मासिक खर्च यह लेख इतना लोकप्रिय हुआ कि कादंबरी की सभी प्रकाशित अंक प्रतियां बिक गई तथा संपादक को पुनः इस अंक का दूसरा संस्मरण छापना पड़ा। इससे सर जौनसारी के कुशल लेखनी तथा प्रतिभा का बखूबी आंकलन किया जा सकता है।

मुझे आज लिखते हुए इस बात का बेहद अफसोस भी हो रहा है जो व्यक्ति इतनी प्रतिभाओं का धनी था जिसने अपना सारा जीवन शिक्षा तथा समाज के लिए निछावर किया जिसके शिक्षा रोपण से जौनसार बावर के कई छात्र बरगद के पेड़ों की तरह मजबूत हुए तथा फले फूले आज उनके प्रति जौनसार बावर के पत्रकार लेखक बुद्धिजीवी प्रबुद्धजन तथा नई पीढ़ी बिल्कुल अनभिज्ञ से है। अपने नजदीकी क्षेत्र साहिया मे जिस हाई स्कूल खुलवाने के लिए इनका सराहनीय योगदान रहा, आज वहां पर डिग्री कॉलेज भी खुल गया है लेकिन सरदार सिंह राय साहब के नाम से आज तक कोई भी शैक्षिक संस्थान खोलना न ही हमारे राजनीतिज्ञों ने उचित समझा तथा ना ही क्षेत्र की जनता इनके सामाजिक कार्यों से जागृत है। सर जौनसारी सरदार सिंह राय साहब तो 7 जनवरी 2002 को इस लोक से अलविदा कह गए परंतु एक महान शख्सियत का नाम लोगों ने आज भूला दिया है। आज सरदार सिंह राय का नाम जौनसार बावर से जैसे गुमनाम सा हो गया है।

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