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मौन साधना का पथिक अनन्त विश्रांति की ओर..

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साधना केंद्र आश्रम डुमेट के चारों तरफ आज गाड़ियां ही गाड़ियां हैं। विद्यालय के प्रांगण में एक हेलीकॉप्टर उतरा और बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण जी उस साधना केंद्र आश्रम की तरफ चल दिए जिस साधना कक्ष में विश्व के 35 से अधिक देशों के साधक दिन-रात साधना में लीन रहते हैं। आज उसी कक्ष में साधना केंद्र के संस्थापक 95 वर्षीय परम श्रद्धेय श्री चंद स्वामी विश्रांति की अवस्था में है। चारों तरफ संत समाज और स्थानीय नर नारी शोकाकुल है ।

साधना कक्ष भक्तों, साधको और शुभचिंतकों से खचाखच भरा हुआ है। गुरु वाणी की ध्वनि और शिष्यों की शोक भरी शिसकीयां ही सुनाई दे रही है। प्रत्येक इस बात से दुखी है कि संकट के समय गुरु जी ने जो आशीर्वाद दिया अब आशीर्वाद उन्हें कौन देगा?
‌ हिमालय और यमुना के प्रति अगाध प्रेम रखने वाला यह मौन तपस्वी हमेशा हमेशा के लिए हमसे विदा हो रहा है। (मौन तपस्वी मैं इसलिए कह रहा हूं कि स्वामी जी ने 33 वर्षों तक मौन व्रत धारण किया था) जितने लोग साधना केंद्र आश्रम के अंदर है उससे अधिक लोग बाहर हैं।
9 मार्च रात्रि 9:32 पर श्री चंद स्वामी उदासीन सांसारिक देह त्याग कर अनंत यात्रा पर निकल पड़े। यह दुखद समाचार सुनकर न केवल जौनसार बावर बल्कि देश-विदेश के हजारों अनुयायी शोक में डूब गए।

80 के दशक में एक कुटिया से प्रारंभ हुआ साधना आश्रम डूमेट आज हजारों विद्यार्थियों को शिक्षा दे रहा है और हजारों रोगियों का उपचार कर रहा है। बगल की सपेरा बस्ती के बच्चों को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाने का काम स्वामी जी ने अपने हाथों से किया।
मुझे याद है कि 20 वर्ष पहले छोटे स्वामी जी के साथ जौनसार बावर के अनेक गांवों में स्वास्थ्य की दृष्टि से रोगियों के उपचार के लिए एक एंबुलेंस जाती थी, जिसमें मुझे भी जाने का अवसर प्राप्त हुआ।

केदारनाथ त्रासदी हो या कोरोना काल हर समय साधना केंद्र ने मानव सेवा के लिए अपना कर्तव्य निभाया। विद्या भारती के अनेक ऐसे विद्यालय है जिनके बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा साधना केंद्र का है। यमुना नदी के तट पर उदासीन परंपरा के इस महान संत को हजारों लोगों ने नम आंखों से अपनी अंतिम विदाई दी, जिसमें देश-विदेश के अनेक भक्तगण शामिल हुए। ओम शांति शांति।

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